अमझरिया में अखण्ड कीर्तन का शुभारम्भ स्थान-अमझरिया, रॉची से 60 किमी. डाल्टनगंज रोड पर, 8 अक्टूबर, सन् 1970🌷
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कीर्तन अध्यात्म के साथ अभिन्न भाव से सम्बद्ध है। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में श्री श्री आनन्दमूर्ति जी का आविर्भाव एक महान् एतिहासिक घटना है। जब मानव जीवन के रन्ध-रन्ध्र में भाव जड़ता ने कर मानव मन के सम्पूर्ण रस-माधुर्य को तिलचट्टे की तरह चाट लिया था, तब इस विषम परिस्थिति को समझ कर परम गुरु ने बीसवीं के मध्य में आनन्द मार्ग संस्था की स्थापना की। दिगभ्रमित मानव को ज्ञानालोक से आलोकित किया। उन्होंने वर्तमान परिवेश, मानव मनोविज्ञान, शारीरिक संरचना, एवं सुदूर भविष्य को देख कर अष्टांग की दीक्षा को नये सन्दर्भ में देना शुरू किया।
साधक बाह्य परिवेश के कारण दिगभ्रमित न हो, इस कारण विभिन्न अवसरों पर उन्होंने धर्म, दर्शन, समाज शास्त्र, अर्थशास्त्र, शास्त्र साहित्य, कला, विज्ञान आदि से सम्बन्धित मौलिक ज्ञान चर्चा प्रारम्भ की तथा एक सम्पूर्ण अध्यात्म दर्शन, दर्शनाधारित धर्मशास्त्र, समाज दर्शन, कुण्डलिनी योग एवं तन्त्र साधना को नये सिरे एवं प्रवर्तित किया। आनन्द मार्ग के प्रारम्भिक दिनों में ज्ञान की खूब चर्चा हुई थी।
साठ के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में उत्साही युवकों के एक दल ने मार्ग के आदर्श को दिग-दिगन्त में प्रचारित करने के उद्देश्य से पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में अपने को समर्पित किया। सेवा से समर्पित साधकगण विद्यालय, महाविद्यालय, शिशुसदन, आभा सेवा सदन आदि खोलने लगा। चारों ओर त्राण एवं राहत कार्य जोरों से चलने लगे। सर्वज्ञ अन्तर्यामी मार्ग गुरु ने देखा कि साधक गण समाज सेवा मे दिन-रात जड़ जगत् के सम्पर्क में रह कर जड़-जगत् की ही चर्चा करते हैं। इससे दुष्प्रभावित हो कर साधकों का मन कही जडात्मक न हो जाए। इसलिए साधकों की साधना सम्बन्धी ऊर्ध्व गति एवं समाज में कीर्तन के व्यापक प्रभाव को देख कर परमपूज्य बाबा ने 8 अक्टूबर 1970 को रॉची से लगभग 60-70 किमी दूर डाल्टनगंज रोड पर स्थित अमझरिया वन विभाग के विश्रामागार में कीर्तन की विस्तृत चर्चा करके बाबा नाम केवलम अष्टाक्षरी मन्त्र को विभिन्न राग रागिनियों के साथ दिया था।
यह एक बहुत ही रोचक घटना है। जैसा कि आप जानते हैं कि बाबा ने 1969 को साधना वर्ष के रूप में घोषित किया था तथा साधक के मन में साधना के प्रति आकुलता बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न आध्यात्मिक भाव एवं समाधियों का अध्यात्मिक प्रयोग किया था। तत्पश्चात् उन्होंने 1969 में सेमिनार का कार्यक्रम दिया इस कार्यक्रम के माध्यम से ज्ञान की चर्चा करके मार्गीगण आनन्द मार्ग के दर्शन से अवगत हुए। फिर उन्होंने 1970 में U. K. K. (Utilisation katha kiirtan) का कार्यक्रम दिया। साधकगण इस कार्यक्रम को सफल बनाने में जोश-खरोश से जुट गये।
मैं उन दिनों केन्द्रीय कार्यकर्ता के पद पर रॉची में काम कर रह था। एक दिन अचानक पूज्य बाबा ने तात्कालिक जनरल सचिव आचार्य सर्वेश्वरानन्द अवधूत को अपने कमरे में बुला कर कहा- कि किसी एकान्त स्थान में अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ विश्राम करने के लिए जाने की इच्छा है। बाबा ने जी. एस. को उपयुक्त स्थान तलाश करने काआदेश दिया। पूज्य बाबा के आदेशानुसार बहुत से कार्यकर्ता एवं मार्गीगण इस पुनीत कार्य में लग गये। उनके विश्राम के लिए एक उचित स्थान खोज कर मार्ग गुरु को उस स्थान के बारे में सूचित किया गया। उस स्थान के प्राकृतिक सौन्दर्य एवं सुहावने परिवेश को सुनकर पूज्य बाबा ने वहाँ जाने की अपनी सहमति से जी. एस को सूचित किया उनकी सहमति पा कर वह स्थान पूज्य बाबा के विश्राम हेतु आरक्षित करा लिया गया।
दूसरे दिन सुबह पूज्य बाबा अपने परिवार के सदस्यों निजी सचिव एवं दो-तीन मार्गी सुरक्षा कर्मियों को साथ लेकर निर्दिष्ट स्थान के लिए प्रस्थान कर गये। जाने से पूर्व उन्होंने आदेश दिया कि इस स्थान की जानकारी किसी को नहीं होनी चाहिए कि मैं कहाँ जा रहा हूँ। इस तरह पूज्य बाबा रहस्यमय तरीके से उस स्थान के लिए प्रस्थान कर गये। कुछ दिन तक पूज्य बाबा उस एकान्त स्थान में ठहरे।
सात अक्टूबर सन्ध्या का समय रहा होगा। पूज्य बाबा बन विभाग के विश्रामागार के सामने एक चबूतरे पर कुछ साधकों के साथ बैਰੇ हुए थे। वातावरण शान्त था। चारों तरफ अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य की नैसर्गिक छटा बिखरी हुई थी। अचानक पूज्य बाबा बोल उठे देखो जी! लगता है कोई मधुर आवाज सुनाई दे रही है। तुम लोग एकाग्र मन से सुनने की चेष्ठा करो। कुछ देर बाद वहाँ उपस्थित साधकगण बोल उठे--"बाबा नाम केवलम्" कीर्तन की मधुर आवाज आ रही है। पूज्य बाबा बोले यह आवाज़ कहाँ से आ रही है? तथा कौन गा रहा है। उन लोगों को गाने वाला कोई भी व्यक्ति नज़र नहीं आया। पूज्य बाबा पुनः बोले यह "बाबा नाम केवलम" की आवाज अन्तरिक्ष से आ रही हैं तथा इसे गन्धर्व एवं किन्नर लोग गा रहे हैं। कुछ देर चुप रहने के बाद पूज्य बाबा स्वयं बोले-क्यों नहीं यहाँ कल दोपहर एक बजे से “बाबा नाम केवलम' अष्टाक्षरी महा मन्त्र का तीन घण्टे का अखण्ड कीर्तन का आयोजन किया जाए? उपस्थित साधकगण एक स्वर में बोल पड़े जी हाँ बाबा।
उनकी कृपा से उस क्षेत्र के गृही आचार्य ब्रह्मदेवजी वहाँ उपस्थित थे। सभी मार्गियों को सूचित करने का कार्य उन्हीं को सौंपा गया। उन्होंने जा कर मार्गियों को कीर्तन की सूचना दे दी। दूसरे दिन आस-पास के सैकड़ों मार्गी भाई-बहिन अमझरिया पहुँच गये। पूज्य बाबा के निर्देशन में गैरेज के पास जंगली फूल, आम के पत्ते इत्यादि से भव्य कीर्तन पण्डाल बना कर उसमें कीर्तन की शुरूआत की गई। साधकगण पूज्य बाबा की उपस्थिति में भाव-विभार होकर “बाबा नाम केवलम' अखण्ड कीर्तन गाने लगे। इस तरह अखण्ड कीर्तन धूम-धाम से चलता रहा तथा साधकगण भक्ति की सरिता में प्रवाहित होते रहे।
कीर्तन समाप्त होने के पूर्व एक बहुत ही आश्चर्यजनक घटना घटी। उस समय कीर्तन अपनी चरम सीमा पर था। साधक गण भाव-विभोर हो कीर्तन में मस्त थे। बाबा की काले रंग की Desoto कार अचानक कीर्तन मण्डप की ओर खिसकने लगी। पीछे के बरामदे पर खेल रहे बाबा के सुपुत्र गौतम की नजर जब उस कार पर पड़ी तो वह चिल्ला उठे-कार कीर्तन मण्डप की तरफ बढ़ी जा रही हैं। आवाज सुन कर पूज्य बाबा एवं उनके पी. ए. पिछले बरामदे पर आ गये। अगर कार थोड़ी दूर और आगे बढ़ती तो कीर्तन बाधित हो सकता था। पूज्य बाबा ने एक विचित्र भाव से कार की तरफ देखा। वह कार जहाँ की तहाँ रुक गई। यह एक आश्चर्यजनक, अविश्वसनीय किन्तु यथार्थ घटना है। तत्पश्चात् पूज्य बाबा ने ही बताया कि कीर्तन के आकर्षण से आकर्षित हो कर जड़ वस्तु कार भी कीर्तन की तरंग से स्पन्दित हो कर अपने आनन्द को रोक नहीं पाई और कीर्तन की और चल पड़ी। भविष्य में जब हजारों लोग एक साथ कीर्तन करेंगे, उस समय एक जोरदार तरंग उत्सारित होगी। उस तरंग से मनुष्य पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, यहाँ तक जड़ वस्तुएँ भी स्पन्दित एवं आनन्दित हो उठेगी।
श्री श्री आनन्दमूर्ति जी द्वारा प्रदत्त "बाबा नाम केवलम' अखण्ड कीर्तन अध्यात्म जगत् की एक ऐतिहासिक घटना है तथा मानव समाज को उनकी एक अपूर्व देन है। इस कीर्तन से स्पन्दित हो कर लाखों-लाख मनुष्य भक्ति की सरिता में स्नान करेंगे।
कीर्तन देने के दूसरे दिन बाद पूज्य बाबा राँची आ गये। पूज्य बाबा प्रतिदिन सुबह-शाम साधकों के मध्य कीर्तन की महिमा के विषय में प्रवचन देने लगे। उन दिनों मैं राँची में ही रहता था। मुझे याद है कि वह दीपावली का शुभ दिन था। पूज्य बाबा राँची जागृति में शाम को जनरल दर्शन देने आए थे। साधकों को सम्बोधित करते हुए पूज्य बाबा बोले-आज से मैं इस “बाबा नाम केवलम्" अष्टाक्षर महामन्त्र को सिद्ध करके मानवता के परम कल्याण हेतु प्रसारित करता हूँ। तुम लोग विश्व के कोने-कोने में इस कीर्तन का प्रचार-प्रसार करो।
-- श्रद्धेय आचार्य परमेश्वरानन्द अवधूत द्वारा लिखित ''दिव्यानुभूति'' नामक पुस्तक से साभार।🙏
*🌷बाबा नाम केवलम् 🌷*
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