महाप्रयाण दिवस भावजड़ता के आगोश में
--------------------------------- श्री अशोक जी, गोरखपुर
25/08/1991 को आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की सर्वोच्च विधायिका "सेन्ट्रल कमिटी" ने एक प्रस्ताव पारित कर "महाप्रयाण दिवस" को 21 अक्टूबर से 26 अक्टूबर तक मनाने का निर्णय लिया और बाद में इसे परिशिष्ट या appendix के रूप में चर्याचर्य, पार्ट- 1 में जोड़ दिया|
यह महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित करते समय, मेरे समझ से इसके प्रभावों पर गहराई से विचार- विमर्श नहीं किया गया और निम्नलिखित तथ्यों की अनदेखी की गई-
1. हमलोगों के समाजशास्त्र " चर्याचर्य " में कहीं भी इसका उल्लेख नहीं किया गया था, 21 अक्टूबर 1990 के पहले|
चर्याचर्य पार्ट- 1 का पहला संस्करण अप्रैल 1956 में प्रकाशित हुआ था|इस समयावधि में या यों कहें बाबा के भौतिक काल में चर्याचर्य पार्ट-1 में "महाप्रयाण दिवस" का कहीं भी उल्लेख नहीं है, इसका मतलब बाबा इसे नहीं चाहते थे|
दूसरी ओर बाबा आनन्द मार्ग के आरंभिक काल में ही अपना जन्म दिन "आनन्द पूर्णिमा" के रूप में मनाने की अनुमति दिये और इसे चर्याचर्य पार्ट-1 में उस समय ही शामिल कर लिया गया और प्रत्येक साल आनन्द पूर्णिमा मनाया गया|
जब बाबा अपने भौतिक काल में इसे चर्याचर्य में शामिल करने की अनुमति नहीं दिये, तब एक उत्सव के रूप में इसे मनाना उचित नहीं है|
2. भगवान शिव, भगवान कृष्ण की भांति हमलोगों के बाबा भी तारक ब्रह्म हैं| जिस प्रकार भगवान शिव व भगवान कृष्ण का महाप्रयाण दिवस नहीं मनाया जाता है, उसी प्रकार तारक ब्रह्म बाबा का भी महाप्रयाण दिवस नहीं मनाना चाहिए|
3. तारक ब्रह्म बाबा सिर्फ पंच भौतिक शरीर को त्याग कर सगुण/निर्गुण अवस्था में लीन हैं, वे हमलोगों को छोड़कर कहीं सूदूर चले नहीं गये हैं|वे आज भी इसी सृष्टि में हैं और अपने दायित्वों का सम्यक् निर्वहन कर रहे हैं|भक्त आज भी उनसे बातें करते हैं, उनको प्रभात संगीत सुनाते हैं और उनको कीर्तन सुनाकर भक्त और भगवान दोनों आनन्दित होते हैं|वे अपने भक्तों के सुख- दुख मे आज भी साथ रहते हैं, ध्यान लेशन में भक्त आज भी उनके रूप- सौन्दर्य को निहारते हैं, तो फिर उनके महाप्रयाण का दिवस हम क्यों मनायें?
सेन्ट्रल कमिटी ने 25/08/1991 को महाप्रयाण दिवस मनाने का प्रस्ताव तो पारित कर दिया, लेकिन बाद में कुछ लोगों को इस गलती का अहसास हुआ, तब जाकर थर्ड फ्रंट और रांची प्रशासन ने महाप्रयाण दिवस मनाना बंद कर दिया, लेकिन कोलकाता प्रशासन आज भी मना रहा है, जो कि न केवल गलत है बल्कि तारक ब्रह्म द्वारा स्थापित परंपराओं का भी उल्लंघन है|
महाप्रयाण दिवस के बदले में कोलकाता प्रशासन, शरदोत्सव का धूमधाम से आयोजन कर सकता है, जिसका वर्णन चर्याचर्य पार्ट-1 में किया गया है| शरदोत्सव अक्सर अक्टूबर माह में ही पड़ता है और लगभग एक हफ्ते का कार्यक्रम चर्याचर्य में वर्णित हैं, आप इस समय खुब कीर्तन कीजिये और चर्याचर्य में वर्णित अन्य कार्यक्रम का आनन्द लीजिए, कोई इसपर अंगुली नहीं उठायेगा|
अतः कोलकाता प्रशासन से विनम्र अनुरोध है कि आनन्द मार्ग में तारक ब्रह्म की संकल्पना के विरूद्ध कोई गलत परंपरा न डालें, जिससे बाद में शर्मिन्दगी महसूस हो और आनेवाली पीढियां आपको दोषी ठहराये|
महाप्रयाण दिवस के बदले में आप धूमधाम से चर्याचर्य पार्ट-1 में वर्णित "शरदोत्सव" मनायें, हमलोगों की शुभकामनायें आपके साथ रहेंगी|
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