महाप्रयाण और आनंदमार्ग चर्याचर

महाप्रयाण और आनंदमार्ग चर्याचर 

1)बाबा का निर्देश है कि शव निःशब्द वहन करोगे।कीर्तन और वाद्य का प्रयोग नही  करोगे।श्राद्ध में भी कीर्तन के दौरान वाद्य यंत्र झाल मजीरा का प्रयोग नही करोगे।

       अतः उपरोक्त की पूर्ति के लिए भक्तो ने कहा कि उस दिन के बजाय उसी दिवस पर जी भर के मृदंग खोल का प्रयोग कर कीर्तन करे।इससे मानव निर्मित नियम से बाबा की बात भी रह जायेगी और हम लोग वाली भी चलती रहेगी।

2)बाबा का निर्देश है कि श्राद्ध के दिन भोज दावत नही करोगे।अतः उनके अनुयाइवो ने अपनी बात ऊपर रखने के लिए कहा कि चलो एक दिन बाबा की बात मान लो बाकी हर साल उसी दिन भोज पकवान बना कर खाओ।

3) बाबा सदैव समाज के अंतिम ब्यक्ति की पीड़ा समझते थे।और इस बात से दुखी थे कि जिस किसी गरीब के यहाँ मृत्यु होती है उसके आंखों के आंसू अभी रुके भी नही होते थे कि वो ब्यक्ति चिंता में पड़ जाता था कि आगे का क्रिया कर्म कैसे करेंगे।इसलिए बाबा ने नियम बना दिया दाह संस्कार समाज सम्मिलित रूप से करेगा और श्राद्ध में कोई खर्च नही सिर्फ एक मग पानी से।और ये भी बता दिया कि इस श्राद्ध कर्म का वैदेही आत्मा से कुछ लेना देना नही।ये नियम अमीर गरीब सभी के लिए समान।फिर आगे क्या हुआ अमीरों ने सोचा कि हमारा वैभव कैसे स्थापित होगा।अगर हम भी आम गरीब लोग की तरह श्राद्ध कर लेंगे।फिर एक विकल्प देखा कि चलो हर साल भोज भात के साथ कीर्तन करेंगे।नए नए वस्त्र पहनेंगे।खायेंगे पियेंगे धूम मचाएंगे बड़े पैमाने पर मीडिया के सामने दान पुण्य कर प्रभाव जमाएंगे।फिर उन लोगो ने सोचा की इस प्रथा को स्थापित कैसे करेंगे।क्योंकि ये मार्ग गुरुदेव के दिशा निर्देश के विरुद्ध है।तो उन लोगो ने कहा कि परमपुरुष का ही हर वर्ष धूम धाम से पुण्य तिथि कर दो नाम होगा महाप्रयाण।और ये प्रथा चल पड़ी।अब तमाम गरीब लोग दुखी हो गए कि मेरे पास तो पैसा नही हम कैसे अपने प्रिय आत्मीय जनों के पुण्य आत्मा को तृप्त करेंगे।फिर उनके अंदर घोर निराशा व्याप्त हो गया ।फिर उन्होंने अपने मन समझाया कि चलो परमपुरुष का फिर जब इस धरा पर आविर्भाव होगा तो वो कुछ करेंगे।

   

*🌹निर्गुण के उपासक समाज में व्याप्त कुरीतियों पर बिना लाग लपेट के प्रहार करने वाले सन्त कबीर दास के मृत्यु के बाद भी उनके उपासको में संघर्ष छिड़ा की वो हिन्दू थे या मुसलमान।व्यवस्थापकों ने उनके मृत शरीर को गायब कर वहीं पुष्प रख दिया।उस पुष्प का कुछ अंश लेकर हिन्दू सन्तुष्ट हुए उसे मंदिर में स्थापित किया कुछ अंश लेकर मस्जिद में।जिसका जीता जागता उदाहरण संतकबीर नगर(गोरखपुर )में है।इतने महान सोच के सन्त को भी लोगो ने इतने हल्के में लिए।उनकी वाणी के मर्म को नही समझा उनके मृत शरीर को मजहबो में बांटने की कोसिस की।आज बाबा आनंदमूर्ति जी के वाणी , चर्याचर्य , उनके करुणा प्रेम की भासा को लोग ठुकराकर उन्हें मात्र दो जगह केंद्रित कर दिए।उनका जन्म स्थल , उनका मृत्यु स्थल।उनकी मृत्यु की तिथि।

भगवान कृष्ण के जन्म के लगभग 3500 वर्ष बाद बने इस सीरियल में जो कि गीता , महाभारत के कथानकों पर आधारित ये सीरियल जिसमे भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं कि सिर्फ दो की मृत्यु नही हो सकती एक तो मेरी दूसरी मृत्यु की।

     लेकिन बाबा आनंद मूर्ति के अनुयायी अभी उनके भौतिक शरीर  छोड़े 100 भी नही हुए उनकी मृत्यु को प्रमाणित करने के लिए जी जान से लग गए।एक व्यवस्थापक तो उस स्थल पर 6 दिन का आयोजन शुरू कर दिया।दूसरे व्यवस्थापक को उस जगह पर कब्जा नही मिला तो उनके अस्थि कलश से काम चलाते हुए उनके जन्म स्थल को पकड़ लिया।उन्हें जन्म और मृत्यु के दायरे में बांधने की पूरी कोशिश।*

जिस दिन 3rd फ्रंट (यूनिटी ग्रुप) इन दोनों से मिल जाएगा यानी कि इनके जन्म मृत्यु प्रकरण में समा जाएगा उस दिन इस यूनिटी ग्रुप का नाम लेवा नही बचेगा कोई।आज यूनिटी ग्रुप की विशेष जिम्मेदारी है कि यूनिटी करे जरूर लेकिन परम पुरुष के आदर्श से समझौता करके नही।

























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