पुरी उड़ीसा स्थित केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय मैं आनंद मार्ग के आचार्य प्रियकृष्णानंद अवधूत ने छात्राओं के बीच योगासन एवं ध्यान की प्रक्रिया से अवगत कराया।


पुरी उड़ीसा स्थित केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय मैं आनंद मार्ग के आचार्य प्रियकृष्णानंद अवधूत ने छात्राओं के बीच योगासन एवं ध्यान की प्रक्रिया से अवगत कराया। आचार्य प्रियकृष्णानंद अवधूत ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि   शिक्षा का अर्थ है बच्चे की अस्तित्व के तीनों क्षेत्रों: शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक क्षमता का विकास।शिक्षा का वास्तविक अर्थ त्रिपक्षीय विकास है - मानव अस्तित्व के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में एक साथ विकास।  इस विकास से मानव व्यक्तित्व के एकीकरण में वृद्धि होनी चाहिए।  इससे सुप्त मानवीय क्षमताओं को जागृत कर उसका समुचित उपयोग किया जा सकेगा।

छात्रों में सार्वभौमिकता की भावना भी जागृत होनी चाहिए।  शिष्टाचार और परिष्कृत व्यवहार ही पर्याप्त नहीं है।  वास्तविक शिक्षा समस्त सृष्टि के प्रति प्रेम और करुणा की व्यापक भावना पैदा करती है।
 शिक्षा प्रणाली में केवल दर्शन और परंपराओं पर ही नहीं, बल्कि नैतिक शिक्षा और आदर्शवाद की शिक्षा पर भी जोर दिया जाना चाहिए।  नैतिकता का अभ्यास सभी स्तरों पर पाठ्यक्रम में सबसे महत्वपूर्ण विषय होना चाहिए 

“छात्रों को वीडियो कॉल शिक्षा को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए क्योंकि आज का बच्चा कल का नागरिक है।  बच्चे की ग्रहणशील क्षमता बहुत अच्छी होती है, लेकिन ग्रहणशीलता को बढ़ाने के लिए शिक्षा की पद्धति पूर्णतः मनोवैज्ञानिक होनी चाहिए ।हमें शिक्षा प्रदान करने से पहले तीन बुनियादी बातों को ध्यान में रखना होगा।  पहला यह कि शिक्षा सदैव तथ्यात्मकता पर आधारित होनी चाहिए।  दूसरा मूल तत्व यह है कि शिक्षा से विद्यार्थियों के मन में ज्ञान की प्यास जागृत होनी चाहिए।  शिक्षा का तीसरा मूल तत्व यह है कि शिक्षकों और छात्रों का  संतुलित आचरण एवं व्यवहार होना चाहिए,।ज्ञान की प्यास जगानी होगी और उस प्यास को बुझाने के लिए उचित शिक्षा देनी होगी।  तभी शिक्षा सार्थक होगी और विद्यार्थी के शरीर, मन और आदर्शों का विकास होगा।






Post a Comment

0 Comments