वर्तमान धार्मिक संगठन क्या श्री श्री आनंदमूर्ति जी के आदर्शों पर चल रही है
बाबा कहते हैं
*सामाजिक दायित्व का जब प्रश्न आयगा तब निश्चय ही पूर्ण से विचार कर देखना होगा। जिस किसी को सामाजिक दायित्व नहीं दिया जा सकता, कारण सामाजिक दायित्व जो लेंगे, वे ही मनुष्य को विकास का पथ दिखायेंगे, वे ही न पापियों के सुधार का बोझ उठाएँगे? किन्तु वे स्वयं अगर कलुषित मानसिकता लेकर काम करें तो सामाजिक दायित्व का पालन करना उनके लिए सम्भव न होगा। समाज के सम्बनध में कहा गया है. विश्वमानवतावाद की प्रतिष्ठा नीतिवाद के प्रथम स्फूरण से इन दोनों के बीच जो व्यवधान है उस व्यवधान का अतिक्रमण करने के कार्य के जो व्रती हुए हैं उनकी मिलित गोष्ठी का नाम समाज है। इसलिए सामाजिक दायित्व उन्हीं हाथों में देना होगा जो इस महान कार्य के पूरा करने में सक्षम है। समाज यदि नीतिवाद से यात्रा आरम्भ करे, तो समाज का भार जो लेंगे उन्हें अत्यावश्यक रूप से नीतिवादी होना होगा। समाज की परिणति जब विश्वमानवतावाद की प्रतिष्ठा है, तो उन्हें भी विश्वजनीन होना होगा। इसलिए उन्हें भी कठोर साधना में व्रती होना होगा इसलिए उनके जीवन का दिग्दर्शन होगा Morality is the base- Sadhana is the means and life divine is the goal. यह महान दायित्व कभी भी अपराधप्रवण व्यक्तियों के हाथ में नहीं छोड़ा जा सकता। जबतक ये अपना सुधार नहीं कर लेते तबतक मनवीय मूल् से वञ्चित नहीं होंगे। किन्तु निश्चय ही इन्हें कोई सामाजिक मूल्य दिया जायगा।*
श्री प्रभात रंजन सरकार
अभिमत
*सामाजिक मूल्य और मानवीय मोल नीति*)
प्रउत प्रणेता श्री प्रभात रंजन सरकार कहते हैं कि मनुष्य के समष्टिगत कल्याण के लिए उसे विभेद को दूर करना होगा इस कार्य का समाधान करने के लिए जन्म गोष्टी की जीवनधारा को बहुमुखीता के बीच common points को खोज निकालना होगा हमें उत्साह देना होगा। जहां-जहां विभेद है point of differences है उन्हें कभी भी उत्साह देना उचित न होगा। हमारी नीति होनी चाहिए
Point of unity should be encourage and point of differences should be discourage
इस नीति का अवलंबन करने से मनुष्य के बीच में एकता की वृद्धि होगी।
अभिमत
मनुष्य का समाज एक और अविभाज्य है
श्री प्रभात रंजन सरकार
बाबा कहते हैं जिन लोगों ने मानव समाज को अनगिनत खंडों में विभाजित किया है, वे समाज के शत्रु हैं ... उनके कार्यों से पता चलता है कि वे न केवल परमपुरुष की उपेक्षा करते हैं, बल्कि वास्तव में उनसे घृणा करते हैं।"
श्रीश्री आनंदमूर्ति - सुभाषित संग्रह भाग 9 पर विचार
“डोगमा ने मानव मन में जड़ जमा ली है। लोग इन झूठे विचारों से छुटकारा नहीं पा सकते हैं क्योंकि उन्हें बचपन से ही अपने दिमाग में इंजेक्ट किया जाता है। परिणामस्वरूप, एक मानव समाज विभिन्न राष्ट्रों में विभाजित है, और एक राष्ट्र विभिन्न धर्मों में विभाजित है; धर्मों की भी अलग-अलग जातियाँ होती हैं, और जाति की भी अलग-अलग उपजातियाँ होती हैं - यह कैसी स्थिति है? हमने केवल मानवता को विभाजित और वश में करना सीखा है, और हमने कभी नहीं सीखा कि लोगों को कैसे एकजुट किया जाए। यह सब हठधर्मिता की दोषपूर्ण शिक्षाओं के कारण है। ”
पी। आर। सरकार - FEW PROBLEM SOLVED 7 भाग:
किसी ने पाप किया है इसलिए उसका सारा जीवन नष्ट होने देने का सुयोग ना दिया जाए। किसी भी अवस्था में किसी को भी समाजच्युक्त करना नहीं चलेगा।
*अभिमत से साभार*
*श्री प्रभात रंजन सरकार*
*चोरी नहीं करना ही मनुष्य का अंतिम लक्ष्य नहीं हो सकता चोरी करने की प्रवृत्ति को नष्ट करना बड़ी बात है।*
*श्री श्री आनंदमूर्ति जी*
मानव समाज एक और अवि भाज्य है। इसे विभाजित करने की चेष्टा मत करो प्रत्येक को परमपिता के विकास के रूप में देखना होगा
श्री श्री आनंदमूर्ति जी
*याद रखो विश्व के प्रत्येक मनुष्य को मार्ग के आदर्श को ग्रहण नहीं करने तक तुम्हारा विश्राम का अवकाश नहीं है।*
*श्री श्री आनंदमूर्ति जी*

0 Comments