Prout Study Circle, प्रउत प्रशिक्षण PART 1

 Date :- 6.04.2024 

AMPS REVIEW & DEFECTS FORUM 



  प्रउत एक सामाजिक, आर्थिक दर्शन (Socio Economic Philosophy) है जिसका प्रतिपादन आध्यत्मिक और समाज गुरु, आर्थिक, सामजिक चिंतक श्री प्रभात रंजन सरकार जी ने किया

।इस दर्शन (Philosophy) का नाम हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रउत / PROUT है।

PRO- Progressive

U- Utilization

T-Theory


प्र- प्रगतिशील

उ- उपयोग

त-तत्त्व

 

प्रउत दर्शन, जो कि 16 सूत्र के रूप में है, आनंद सूत्रम के पांचवे अध्याय में है। लेकिन पांच मौलिक सूत्रों, Five Fundamental Principles, की चर्चा पहली बार Idea and Ideology के Cosmic Brotherhood Chapter में हुआ है। प्रउत दर्शन की सार्वजनिक उदघोषणा (Public Declaration) 14th September, 1959 को मोतिहारी शहर (भोजपुरी समाज, बिहार राज्य) में 'प्रउत प्रणेता' ने स्वयं किया।


15th Sept, 1959 को प्रउत के प्रचार के लिये पहले संगठन Universal Proutist Student Federation (UPSF) की स्थापना हुई।


यक्ष प्रश्न यह है कि क्या आज के समय में प्रउत दर्शन की आवश्यकता है?

 1760 में शुरू हुये Industrial Revolution, जिसने पूंजीवादी व्यवस्था की नीवं डाली और समृद्धि के बड़े बड़े सपने दिखाये। और पूंजीवादी व्यवस्था के 260 वर्षों में दुनिया की समृद्धि चंद हाथों में सिमट कर रह गयी है। Forbes Billionaires List, 2024 के अनुसार दुनिया में 2781 Billionaires (अरबपति) हैं जिनकी सामूहिक सम्पत्ति $14.2 Trillion है जो भारतीय रुपये में ₹12 करोड़ करोड़ है। कोरोना के बाद, 2020 से, दुनिया भर में 500 करोड़ (5 Billion) लोगों का आय कम हुआ है। भारत में भी स्थितियाँ कोई सुखद नहीं है। Oxfam 2024 का आंकड़ा कहता है कि भारत के 21 अरबपतियों के पास जितनी सम्पत्ति है वह आधी आबादी (70 करोड़) की सम्पत्ति से ज्यादा है।*


वस्तुतः असीमित दिखने वाला धन (Money) actually unlimited नहीं है। और इस Accumulation of Wealth (धन संचय) ने दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी को असाधारण गरीबी में जीने के लिये बाध्य कर रखा है जिनकी न्यूनतम आवश्यकताओं की भी पूर्ति नहीं हो पा रही है।


विकास के इस आपाधापी ने न सिर्फ मनुष्यों का नुकसान किया है बल्कि पूरे पर्यावरण और Ecological System को बर्बाद कर दिया है। हवा, पानी, खाना सब कुछ प्रदूषित / polluted हो चुका है। साथ ही जंगल, पहाड़, नदियां, हरियाली, प्राकृतिक सौंदर्य, पशु, पक्षी, पौधे (Flora and Fauna) आदि सभी पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है।


वैश्योचित शोषण चरम पर है और यह शोषण सिर्फ और सिर्फ पूंजीवादी व्यवस्था की देन है। अतः इस व्यवस्था को बदलने के अतिरिक्त कोई विकल्प शेष नहीं है।


साम्यवाद, मिश्रित अर्थव्यवस्था, समाजवाद आदि दर्शनों की अकाल मृत्यु, कोरोना काल में निजी क्षेत्र की विफलता, यूक्रेन-रूस युद्ध, फिलिस्तीन एवं इजराइल संघर्ष की काली छाया के बीच दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं; अमेरिका, चीन, यूरोपियन यूनियन आदि की रेंगती GDP Growth Rate ने IMF एवम World Bank आदि को वैश्विक मंदी की घोषणा के लिये बाध्य कर दिया है। ऐसे में पूंजीवाद अपने आखिरी चरण (last phase) में है। आज जब सारे सामजिक आर्थिक दर्शन Fail हो चुके हैं तो ऐसे में "प्रउत" के अतिरिक्त कोई विकल्प शेष बचता नहीं है, कोई विकल्प दिखता नहीं है।


राजेश, वाराणसी

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